अगर नीट ,जेईई परीक्षा हिंदी में हो सकते हैं तो क्लैट (लॉ) क्यों नहीं? दिल्ली हाईकोर्ट ने एनएलयू के कंसोर्टियम से पूछा

Dehradun milap : अगर मेडिकल और जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी में आयोजित की जा सकती हैं, तो लॉ स्कूलों में एडमिशन के लिए आयोजित कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट यानी  क्लैट हिंदी  में क्यों नहीं? दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम से पूछा। जानकारी के लिए बात दें, लॉ स्कूलों में एडमिशन के लिए  क्लैट की परीक्षा केवल अंग्रेजी में आयोजित की जाती है। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की डिवीजन बेंच एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया कि   क्लैट  यू जी की परीक्षा केवल अंग्रेजी में नहीं होनी चाहिए, बल्कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में आयोजित की जानी चाहिए।
बता दें, क्लैट की परीक्षा इस साल दिसंबर में होनी है। अदालत ने एनएलयू के कंसोर्टियम को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। और कहा ” एमबीबीएस (मेडिकल)  एडमिशन टेस्ट और जेईई जैसी परीक्षाएं हिंदी में आयोजित की जा सकती है तो क्लैट क्यों नहीं । एनएलयू के कंसोर्टियम की ओर से पेश वकील ने कहा- कंसोर्टियम बॉडी जनहित याचिका को प्रतिकूल नहीं मान रहा है और हम इस बात से सहमत हैं कि परीक्षा अन्य भाषाओं में भी आयोजित की जानी चाहिए।

माननीय दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वास्ताव में ये एक चिंता का विषय है।एनएलयू के कंसोर्टियम को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है। मामले की सुनवाई अब 7 जुलाई को होगी। याचिका सुधांशु पाठक ने दायर की है। वो दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ की पढ़ाई करता है। याचिका में कहा गया है कि जिन लोगों की शैक्षिक पृष्ठभूमि क्षेत्रीय भाषाओं में रही है, क्लैट परीक्षा उनको बराबरी का मौका नहीं दे रही है। केवल अंग्रेजी में परीक्षा होने से अंग्रेजी माध्यम के स्टूड़ेंट्स का ज्यादा फायदा मिलता है। क्षेत्रीय भाषाओं के स्टूडेंट्स का दखिला नहीं हो पता है।
याचिका में ये भी कहा गया है कि क्लैट (यू जी) की परीक्षा केवल अंग्रेजी भाषा में होना, मनमानी और भेदभावपूर्ण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 29(2) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता का कहना है कि 2020 की नई शिक्षा नीति और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में मातृभाषा को स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा का माध्यम बनाने की आवश्यकता है।

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