Dehradun Milap : उत्तराखंड समेत भारत के कई राज्यों में वनों को बचाने की परंपरा आज भी जिंदा है। ये वन पर्यावरण संरक्षण की नई मिसाल पेश कर रहे हैं। विगत कुछ वर्षों में जिस प्रकार वनों को दोहन हुआ है, उसके बीच देव वन आज भी संरक्षित हैं।
कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में देवताओं को समर्पित सैंकड़ों देव वन वर्षों से सुरक्षित हैं। ग्रामीण इन वनों से एक पत्ता तोड़ने की हिमाकत नहीं करते हैं। मान्यता है कि ऐसे वनों में देवताओं का वास रहता है। यदि इन वनों को नुकसान पहुंचाया तो देवता नाराज हो जाएंगे। पिथौरागढ़ की कोटगाड़ी देवी लोगों को सबसे अधिक भयभीत करने वाली देवी हैं। यहां के जंगल को कोटगाड़ी देवी को पांच से 20 वर्ष तक के लिए समर्पित किया जाता है। इस बीच कोई भी ग्रामीण अनावश्यक वन में प्रवेश नहीं करता है। जंगलों को ईश्वर के आसरे रखने से अवैध कटान और अन्य तरह का नुकसान भी कम हुआ है, साथ ही जंगल भी काफी फले-फूले हैं।
बोम्बासिंग और भुजानी भी भगवान के जंगल
पिथौरागढ़ जिले के तेदांग गांव के ऊपर बोम्बासिंग और मार्टोली गांव के उपर भुजानी को भगवान के जंगल कहा जाता है। देवता के नाराज होने के डर से ग्रामीण इन जंगलों में घुसने तक की हिम्मत तक नहीं करते हैं। वे जंगल में मृत लकड़ी, चारा, घास या कोई अन्य उपज प्राप्त करने के लिए नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं। केवल मंदोड़ उत्सव के दौरान ही ग्रामीण इन प्रतिबंधित जंगलों में जाते हैं।
देव वनों में पाए जाने वाले पौधे
देव वनों में आमतौर पर बांज, रागा, देवदार, भोजपत्र, रत्पा, जुनिपर प्रजाति के पौधे पाए जाते हैं। इन्हें पवित्र प्रजाति माना जाता है। इस कारण ग्रामीण इन जंगलों की पूजा करते हैं और यहां लगातार हरियाली भी बढ़ रही है।
- कुमाऊं के प्रमुख देव वन- थलेकश्वर, ध्वज, चामुंडा देवी, नकुलेश्वर, धुरका देवी, हुंकारा देवी
- गढ़वाल के प्रमुख देव वन- हरियाली, मतकेश्वर, मानथाट, ताड़केश्वर, शेम मुखिमनाग, थत्यूर
उत्तराखंड के देव वनों पर ‘द सेक्रेड उत्तराखंड’ नाम से एक किताब लिखी है। इसमें बताया कि गया है कि उत्तराखंड में 350 से अधिक देव वन हैं जो देवताओं को समर्पित हैं। यह वन वर्षों से संरक्षित हैं। इन वनों में ग्रामीण देवताओं का वास मानते हैं।