Dehradun Milap : श्री गुरुराम राय दरबार साहिब में श्री झंडा जी मेला आयोजन समिति की बैठक में मेला आयोजन के कार्यक्रमों का शेड्यूल जारी कर दिया गया है। बताया कि इस बार लाखों की संख्या में देश-विदेश से संगत के पहुंचने की उम्मीद को देखते हुए मेले के दौरान होने वाली गतिविधियां व उनके संचालन को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। 50 समितियों का गठन किया है, जो मेले का सफल संचालन करेंगी। इस बार मेले के दौरान आठ बड़े और चार छोटे लंगरों का संचालन किया जाएगा।
क्या है इतिहास
सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय के बड़े पुत्र श्री गुरु राम राय महाराज का जन्म सन 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले में हुआ था। उन्होंने देहरादून को अपनी तपस्थली चुना और दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए विशाल झंडा लगाकर श्रद्धालुओं को ध्वज से आशीर्वाद लेने का संदेश दिया था।
होली के पांचवें दिन
चैत्रवदी पंचमी को श्री गुरु राम राय महाराज के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है व झंडा मेले का आयोजन किया जाता है। होली के पांचवें दिन आरोहण मेला होली के पांचवें दिन देहरादून स्थित दरबार साहिब में झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू होता है। इस दौरान देश-विदेश से संगतें मत्था टेकने पहुंचती हैं। इस मेले में पंजाब, हरियाणा और आसपास के कई इलाकों से संगतें आती हैं। जो कि गुरूराम राय के भक्त होते हैं।
1676 में दून में डेरा
श्री गुरु राम राय ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था। उनका जन्म 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतुपर में होली के पांचवें दिन हुआ था। इसलिए दरबार साहिब में हर साल होली के पांचवें दिन उनके जन्मदिवस पर झंडा मेला लगता है। गुरु राम राय ने ही लोक कल्याण के लिए विशाल ध्वज को यहां स्थापित किया था। देहरादून को द्रोणनगरी भी कहा जाता है। श्री गुरु राम राय ने अपनी तपस्थली बना लिया। गुरु राम राय महाराज सातवीं पातशाही (सिक्खों के सातवें गुरु) श्री गुरु हर राय के पुत्र थे।
घोड़े का पैर जमीन में धंस गया
औरंगजेब गुरु राम राय के काफी करीबी माने जाते थे। औरंगजेब ने ही महाराज को हिंदू पीर की उपाधि दी थी। औरंगजेब महाराज से काफी प्रभावित था। छोटी सी उम्र में वैराग्य धारण करने के बाद वह संगतों के साथ भ्रमण पर चल दिए। वह भ्रमण के दौरान ही देहरादून आए थे। जब महाराज जी दून पहुंचे तो खुड़बुड़ा के पास उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और उन्होंने संगत को रुकने का आदेश दिया। अपने तीर कमान से महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया। देहरादून पहुंचने पर औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को उनका पूरा ख्याल रखने का आदेश भी दिया। उन्होंने यहां डेरा डाला इसलिए दून का नाम पहले डेरादून और फिर बाद में देहरादून पड़ गया। उसके बाद से आज तक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नाम से ही जानी जाती है।