Dehradun Milap : तृप्ति भट्ट की सक्सेस स्टोरी उन लोगों के लिए मिसाल है, जो सरकारी नौकरियों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में एक बार सरकारी नौकरी लगने के बाद उसी में जिंदगी खपा देते हैं और अपने बड़े ख्वाब को अधूरा ही छोड़ देते हैं।
तृप्ति भट्ट भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की उन काबिल अफसरों में से एक हैं, जिन्होंने कंधे पर सितारे और माथे पर अशोक स्तम्भ सजाने के लिए 16 लगी लगाई सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। तृप्ति भट्ट भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। इन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा बेर्शेबा उच्च माध्यमिक विद्यालय अल्मोड़ा उत्तराखंड से पाई। 12वीं की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से की। पंतनगर विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) में सहायक प्रबंधक के रूप में काम किया।
मीडिया की खबरों में दावा किया जाता है कि तृप्ति भट्ट ने यूपीएससी परीक्षा क्रैक करने से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सहित 16 सरकारी नौकरी के प्रस्तावों को ठुकराया था।
मीडिया से बातचीत में तृप्ति भट्ट कहती हैं कि मारुति सुजूकी कैम्प्स प्लेसमेंट मिला, जिसे ज्वाइन नहीं किया। इसके अलावा टाटा मोटर्स समेत कई जगहों से जॉब ऑफर मिले। इसरो सेटेलाइट अफसर की जॉब मिली थी। उसे भी ज्वाइन नहीं किया। तृप्ति भट्ट ने साल 2013 में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा पास की। अपने पहले ही प्रयास में तृप्ति भट्ट ने AIR 165 हासिल की थी। बतौर आईपीएस इनको उत्तराखंड कैडर मिला।
उत्तराखंड पुलिस ने तृप्ति भट्ट की सर्विस देहरादून में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में शुरू हुई। इसके बाद चमोली में एसपी और टिहरी गढ़वाल में राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) के कमांडर के रूप में सेवा दी। फिलहाल देहरादून में एसपी इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी के पद पर कार्यरत हैं। उत्तराखंड में काबिल पुलिस अफसर के रूप में सेवाएं देने के अलावा तृप्ति ने खेलों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। मैराथन और राज्य स्तरीय बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीते हैं। तायक्वोंडो और कराटे में हाथ आजमा चुकी हैं।