Dehradun Milap : उत्तराखंड में इन दिनों निकाय चुनाव को लेकर सियासत गरमा गई है। 11 नगर निगमों समेत नगर पालिका और नगर पंचायतों में चुनाव का बिगुल बज गया है। हर कोई चुनाव को लेकर मैदान में उतर गया है। शहर की सरकार को चुनने के लिए भी लोग उत्सुक नजर आ रहे हैं।
ऐसे में हर कोई ये जानना चाहता है कि उनके जनप्रतिनिधियों को क्या वेतन और क्या सुविधाएं मिलेंगी। बता दें कि नगर निगम में मेयर और पार्षद के लिए चुनाव हो रहा है। जबकि नगर पालिका परिषद के लिए अध्यक्ष और सभासदों का चुनाव होना है।
सवाल ये है कि इन लोगों को क्या वेतन मिलता है, तो इसका जबाव चौंकाने वाला है। उत्तराखंड में नगर निकायों के इन पदों पर बैठे प्रतिनिधियों को सैलरी के रूप में कोई भुगतान नहीं किया जाता। हालांकि अधिकार और प्रशासनिक अधिकार इन पदों के बहुत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन सीधा वेतन या भत्ता नहीं दिया जाता है। मेयर और नगर पालिका अध्यक्षों को सुविधाएं पूरी मिलती हैं। इनमें गाड़ी से लेकर हर तरह की सुविधाएं शामिल हैं। जिसका सारा खर्च नगर निगम प्रशासन की ओर से उठाया जाता है।
कुल मिलाकर नगर निकाय चुनाव में जीतने वाले नेता मेयर, पार्षद, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, सभासद, नगर पंचायत अध्यक्ष, नगर पंचायत सदस्य किसी को भी सैलरी नहीं दी जाती है। नगर निकायों में हर पांच साल में चुनाव होते हैं। शहर की सरकार शहरों में विकास कार्य, सफाई व्यवस्था और अन्य आधारभूत सेवाओं की जिम्मेदारी होती है। इसके साथ ही निगम की जमीनें, निगम के पार्क, हाउस टैक्स, अधिकार आदि कार्य सब की जिम्मेदारी मेयर या चेयरमेन की होती है।मेयर शहर का पहला व्यक्ति होता है।उसका मान सम्मान और प्रतिष्ठा बहुत बड़ी होती है। ऐसे में राजनीति में आने वाले हर नेता एक बार मेयर बनकर भी सम्मान पाने की प्रबल इच्छा रखता है।
मेयर हों या पार्षद, नगर पालिका चेयरमेन सभी जनता से सीधे चुनकर आते हैं। तो इनको भी वेतन या अन्य सुविधाएं निर्धारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नगर निकाय संवैधानिक संस्था है और इनका भारी भरकम बजट होता है। ऐसे में इसमें से कुछ हिस्सा इनके वेतन और खर्चे के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए। मेयर, चेयरमेन का प्रोटोकॉल कैबिनेट मिनिस्टर की तर्ज पर तय होना चाहिए।