शिव-पार्वती का विवाह स्थल, जहां अग्नि को साक्षी मानकर लिए थे फेरे, जानिए कहां

Dehradun Milap : फरवरी बुधवार को महाशिवरात्रि है। जो कि हिंदू धर्म मानने वालों के लिए बड़ा त्यौहार है। इस दिन शिवभक्त शिव पार्वती की आराधना, पूजा और व्रत करते हैं। मान्यता है कि आज के दिन ही शिव पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसे में महाशिवरात्रि पर शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।
जो कि शिव की भक्ती में लीन रहते हैं। ​पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव पार्वती का विवाह स्थल उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में त्रिजुगीनारायण (त्रियुगीनारायण) मंदिर है। ये मंदिर अब वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी फेमस हो गया है।
साल भर यहां ​वैवाहिक कार्यक्रम होते रहते हैं। हालांकि ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। लेकिन शिव पार्वती ​का विवाह स्थल भी है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था। यह मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का है। यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति, जो त्रेतायुग से अब तक निरंतर जल रही है। पौराणिक मान्यता है कि इस हवन कुंड की अग्नि को साक्षी मान कर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती, पर्वतराज हिमावन की पुत्री थी। पार्वती के रूप में मां सती का पुनर्जन्म हुआ था।
अपने इस जन्म में माता पार्वती ने कठिन ध्यान और साधना से भगवान शिव का वरण किया था। जिस स्थान पर मां पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए कठोर साधना की, उस स्थान को गौरी कुंड कहते हैं। बताते हैं कि भगवान शिव जी ने गुप्त काशी में माता पार्वती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।
भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। जबकि ब्रह्माजी पुरोहित बने थे। मंदिर की संरचना बिल्कुल केदारनाथ मंदिर के समान ही है। तीन युगों से इस अग्नि का अस्तित्व है, यही कारण है कि मंदिर त्रियुगीनारायण कहलाता है। त्रियुगीनारायण मंदिर को उत्तराखंड सरकार ने साल 2018 में वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में शुरूआत की। जिसके बाद यहां देश विदेश से​कई हस्तियां शादी करने पहुंच चुकी हैं।​ विजयादशमी और महाशिवरात्रि पर यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *