देहरादून | विशेष संवाददाता
उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन उच्च विधि शिक्षा के क्षेत्र में राज्य आज भी अपने हिस्से के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (NLU) से वंचित है। वर्ष 2012 में इसके लिए गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था, परंतु प्रशासनिक देरी, भूमि चयन विवाद और न्यायालयी प्रक्रियाओं के कारण यह महत्वाकांक्षी परियोजना अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है।
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उत्तराखंड उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक आदेश
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रिट याचिका संख्या 127/2014 में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को लेकर स्पष्ट और बाध्यकारी निर्देश जारी किए थे। न्यायालय ने दोनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित अनिवार्य निर्देश (Mandatory Directions) दिए:
1. राज्य सरकार को निर्देशित किया गया कि वह तीन माह की अवधि के भीतर उत्तराखंड में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय प्रारंभ करे।
2. उपयुक्त स्थायी परिसर उपलब्ध होने तक विश्वविद्यालय को किसी सरकारी भवन में अथवा उचित किराये पर निजी भवन लेकर संचालित किया जाए।
3. राज्य सरकार को विश्वविद्यालय के स्थायी परिसर के लिए तराई क्षेत्र में प्राथमिकता के आधार पर निर्माण कार्य प्रारंभ करने का निर्देश दिया गया।
4. विश्वविद्यालय का प्रथम शैक्षणिक सत्र सितंबर 2018 से प्रारंभ किया जाना था।
5. न्यायालय ने यह भी पाया कि राज्य सरकार द्वारा विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुरूप अब तक विनियम (Regulations) नहीं बनाए गए हैं। अतः राज्य को एक माह की अवधि में विनियम तैयार करने तथा सभी नियुक्तियां विश्वविद्यालय अधिनियम व विनियमों के अनुसार करने के निर्देश दिए गए।
इसके बावजूद, न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के वर्षों बाद भी न तो विश्वविद्यालय प्रारंभ हो सका और न ही निर्धारित समयसीमा का पालन किया गया, जिससे राज्य की उच्च विधि शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए।
अन्य राज्यों से पीछे उत्तराखंड
उत्तराखंड के साथ बने राज्यों—छत्तीसगढ़ (2003) और झारखंड (2010)—में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय पहले ही स्थापित हो चुके हैं। वहां के छात्र अपने ही राज्य में उच्चस्तरीय विधि शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जबकि उत्तराखंड के छात्र अन्य राज्यों के NLUs पर निर्भर हैं।
गृह राज्य आरक्षण: छात्रों को सीधा लाभ
देश के 26 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में प्रवेश कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) के माध्यम से होता है। अधिकांश NLUs में गृह राज्य के छात्रों के लिए आरक्षण का प्रावधान है:
कर्नाटक (NLSIU बेंगलुरु) – 25%
तेलंगाना (NALSAR) – 25%
पश्चिम बंगाल (WBNUJS) – 30%
छत्तीसगढ़ (HNLU) – 50%
उत्तर प्रदेश (RMLNLU) – 50%
झारखंड (NUSRL) – 50%
उत्तराखंड में NLU न होने से राज्य के छात्रों को यह लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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CLAT 2026 हो चुका, अब उम्मीद CLAT 2027 से
CLAT 2026 की परीक्षा संपन्न हो चुकी है, लेकिन उत्तराखंड के छात्रों को अब भी अपने राज्य में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में प्रवेश का अवसर नहीं मिला। छात्रों को आशा है कि CLAT 2027 तक विश्वविद्यालय प्रारंभ होगा और वे अपने ही राज्य में विधि शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।
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राज्य के लिए क्यों जरूरी है NLU
शैक्षणिक स्तर में सुधार: आधुनिक पाठ्यक्रम, मूट कोर्ट और शोध संस्कृति का विकास
आर्थिक विकास: स्थानीय रोजगार, आवास और सेवाक्षेत्र को बढ़ावा
विधिक सेवाओं का सशक्तिकरण: लीगल एड, लोक अदालतें और न्यायिक प्रशासन मजबूत
शैक्षणिक पर्यटन: उत्तराखंड को राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में पहचान
निष्कर्ष
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि राज्य के शैक्षणिक, आर्थिक और न्यायिक विकास की आधारशिला है। न्यायालय की अनुमति के बावजूद किराये की इमारत से भी शुरुआत न होना गंभीर चिंता का विषय है। अब आवश्यकता है त्वरित निर्णय की, ताकि CLAT 2027 के माध्यम से उत्तराखंड के छात्र अपने ही राज्य में राष्ट्रीय स्तर की विधि शिक्षा प्राप्त कर सकें।
