खतरे की घंटी! मसूरी पर मंडरा रहा भूस्खलन का संकट, डेंजर जोन में 15 फीसदी इलाका, चौंकाने वाली एक्सपर्ट रिपोर्ट

Mussoorie Landslide Threat: उत्तराखंड में 15 सितंबर को हुई भारी बारिश के बाद पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी को लेकर एक बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है।

उत्तराखंड में पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी अब एक गंभीर खतरे की आग में घिरती हुई नजर आ रही है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों की तरफ से किए गए एक हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि मसूरी का लगभग 15 फीसदी इलाका भूस्खलन के अत्यधिक खतरे वाले जोन में आ चुका है। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और ठंडी हवाओं के लिए देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने वाली मसूरी को लेकर आई इस रिपोर्ट ने चिंताएं बढ़ा दी हैं। वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट ‘पृथ्वी प्रणाली विज्ञान पत्रिका’ में प्रकाशित हुई है। आधुनिक भू-वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इस अध्ययन को अंजाम दिया गया है।

भारी बारिश ने बढ़ाया खतरा

15 सितंबर को मसूरी और आसपास के इलाकों में हुई भारी बारिश ने न केवल जान-माल को नुकसान पहुंचाया, बल्कि वैज्ञानिकों की चेतावनी को भी सच साबित कर दिया। उस दिन कई जगहों पर सड़कों के धंसने और मकानों में दरारें पड़ने की वजह से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करना पड़ा। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि मसूरी अब सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता का स्थल नहीं, बल्कि भूस्खलन जैसी आपदा का भी केंद्र बन सकता है।

अध्ययन में क्या-क्या मिला?

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने भौगोलिक सूचना प्रणाली, उपग्रह चित्र और सांख्यिकीय विश्लेषण की मदद से मसूरी और उसके आसपास के क्षेत्रों की भूस्खलन संवेदनशीलता का नक्शा तैयार किया। उन्होंने ढलानों की दिशा, मिट्टी की बनावट, चट्टानों के प्रकार, बारिश के पैटर्न, जल निकासी प्रणाली और भूमि उपयोग जैसे अहम तत्वों का गहन विश्लेषण किया।

जॉर्ज एवरेस्ट, केंपटी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, झड़ीपानी, गलोगीधार और हाथीपांव बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं

अध्ययन में बताया गया है कि मसूरी का लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र उच्च जोखिम वाले भूस्खलन क्षेत्र में आता है। लगभग 29 प्रतिशत क्षेत्र मध्यम खतरे के दायरे में है। शेष 56 प्रतिशत क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा कम या बहुत कम है। मसूरी की ढलानें मुख्य रूप से ‘क्रोल चूना-पत्थर’ नामक चट्टानों से बनी हैं, जो नाजुक और अस्थिर हैं। कई ढलानों का झुकाव 60 डिग्री से भी अधिक है, जिससे छोटी बारिश या हलचल में भी मिट्टी खिसक सकती है।

क्या है समस्या की वजह

अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि भूस्खलन के खतरे के पीछे केवल प्राकृतिक कारण ही नहीं, बल्कि मानवजनित कारण भी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। मसूरी में बिना किसी योजना के हो रहा निर्माण कार्य, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, सड़कों की कटाई और विस्फोटक का इस्तेमाल इन ढलानों को बेहद अस्थिर बना रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इन गतिविधियों को नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में मसूरी का भूस्खलन संकट और गहरा जाएगा।

मसूरी के ये इलाके हैं संवेदनशील

अध्ययन के अनुसार, मसूरी के कुछ ऐसे इलाके हैं जो भूस्खलन के नजरिए से बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं। इनमें बाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केंपटी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, झड़ीपानी, गलोगीधार और हाथीपांव प्रमुख हैं। 15 सितंबर की हुई भारी बारिश से इन इलाकों में सड़कें धंस गईं और कुछ मकानों में दरारें आईं। कई परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट भी किया गया।

चेतावनी के साथ सुझाव भी

इस अध्ययन के अंत में वैज्ञानिकों ने मसूरी के लिए कुछ महत्वपूर्ण और तत्काल अपनाने योग्य सुझाव भी दिए हैं। उच्च जोखिम वाले इलाकों में नए निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। सड़क कटाई और विस्फोट पर सख्त नियंत्रण हो। वनों की कटाई पर रोक लगाई जाए और सघन वृक्षारोपण किया जाए। हर निर्माण परियोजना से पहले भूगर्भीय जांच अनिवार्य हो। जल निकासी प्रणाली को मजबूत बनाया जाए ताकि बारिश का पानी ढलानों में जमा न हो।

मसूरी के लोगों की चिंता

मसूरी के स्थानीय निवासी और दुकानदार सुनील राणा बताते हैं, ‘हर साल नई सड़कें और होटल तो बनते हैं, लेकिन पहाड़ की सुरक्षा और जल निकासी पर कोई ध्यान नहीं देता। हमें डर है कि अगली भारी बारिश बड़ी त्रासदी लेकर आ सकती है।’ पर्यावरण लेखक जय सिंह रावत कहते हैं, ‘यह अध्ययन सिर्फ एक वैज्ञानिक दस्तावेज नहीं, बल्कि हिमालय जैसे नाजुक पर्यावरणीय क्षेत्रों में सतर्क रहने की चेतावनी है। विकास तभी टिकाऊ होगा जब हम प्रकृति की सीमाओं को समझेंगे और उसी के अनुसार कदम उठाएंगे। मसूरी की खूबसूरती के पीछे छिपा यह खतरा एक गंभीर चुनौती है। यदि स्थानीय प्रशासन, पर्यावरणविद् और नागरिक मिलकर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तो पहाड़ों की रानी भूस्खलनों की राजधानी बन सकती है। यह वक्त है जागरूकता और सतर्कता का, ताकि मसूरी के पर्वतीय सौंदर्य को सुरक्षित रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियों को यह धरोहर मिलती रहे।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *