Dehradun Milap : इस वर्ष श्रीगणेशोत्सव का प्रारंभ 27 अगस्त, बुधवार से होगा – शुभ मुहूर्त में करें श्रीगणेश जी का पूजन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी, पत्थर चौथ आदि नामों से जाना जाता है। इसी तिथि को लेकर श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने बताया कि इस वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, सिद्धिविनायक व्रत 27 अगस्त, बुधवार को है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मध्याह्न काल में हुआ था, इसीलिए दोपहर का समय गणेश पूजन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। बुधवार, 27 अगस्त को दोपहर 03:45 बजे तक भद्रा काल रहेगा। धर्मग्रंथों के अनुसार जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में रहता है तो भद्रा पाताल लोक की होती है, और ऐसी स्थिति में शुभ कार्य करना वर्जित नहीं होता। इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर भद्रा कन्या और तुला राशि में है, अतः गणपति पूजन एवं स्थापना पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा।
गणेश भक्त यदि मध्याह्न में पूजन करना चाहें तो सुबह 11:04 बजे से दोपहर 01:43 बजे के बीच श्रीगणेश पूजन करना उत्तम रहेगा। इस तिथि को चित्रा नक्षत्र, शुभ योग, विष्टि करण, कन्या एवं तुला राशि का चंद्रमा तथा सिंह राशि का सूर्य रहेगा। उल्लेखनीय है कि इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित माना गया है।
महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। कुछ भक्त 3 दिन या 5 दिन तक भी गणेश जी की स्थापना करते हैं, परंतु परंपरागत रूप से यह उत्सव पूरे दस दिनों तक, अर्थात् भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाना चाहिए।
इस अवधि में श्रद्धालु अपने घरों, मंदिरों एवं पंडालों में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित कर पूजन-अर्चन करते हैं। मान्यता है कि गणेश पूजा से घर में सुख, समृद्धि और संपन्नता आती है।
गणेश स्थापना से संबंधित महत्वपूर्ण बातें :
घर पर लाते समय गणेश जी की मूर्ति की सूंड बाईं ओर होनी चाहिए।
मूर्ति का मुख दरवाजे की ओर न हो, क्योंकि मुख की ओर समृद्धि एवं सौभाग्य का वास होता है, जबकि पीठ की ओर दरिद्रता का।
गणेश जी की स्थापना टॉयलेट से जुड़ी दीवार पर न करें।
चांदी के गणेश जी को उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थापित करें।
सर्वाधिक शुभ स्थान ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) माना गया है, अन्यथा पूर्व या पश्चिम दिशा में भी स्थापना की जा सकती है।
सीढ़ियों के नीचे कभी भी गणेश प्रतिमा स्थापित न करें।
श्रीगणेश पूजन विधि :
गणेश चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। साफ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर श्रीगणेश एवं माता गौरी की मूर्ति तथा जल से भरा कलश स्थापित करें। घी का दीपक एवं धूपबत्ती जलाकर, रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प एवं दूर्वा से पूजन करें।
इसके बाद श्रीगणेश मंत्र का जप करते हुए आह्वान करें, फिर पंचामृत स्नान, वस्त्र-आभूषण अर्पण, सिंदूर, इत्र, दूर्वा, पुष्प और मालाओं से पूजन करें। श्रीगणेश स्तोत्र और मंत्रजप करें।
भगवान गणेश को मोदक अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए मोदक सहित गुड़, ऋतुफल और मिठाइयों का नैवेद्य अर्पित करें। तत्पश्चात गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें और आरती कर 1, 3 या 7 परिक्रमा देकर पुष्पांजलि अर्पित करें।
पूजन के उपरांत यदि किसी प्रकार की भूल या त्रुटि रह जाए तो भगवान गणेश से क्षमा याचना अवश्य करें।